बिहार में गौतम अदानी समूह करेगा बड़ा निवेश, इस दिलचस्पी की वजह क्या है?
- Author,चंदन जजवाड़े
- पदनाम,बीबीसी संवाददाता, पटना से
अदानी ग्रुप बिहार में अपने कारोबार के विस्तार के लिए 8700 करोड़ रुपये का निवेश कर रहा है.
बिहार में फ़िलहाल ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगी दलों का शासन है. विपक्षी दलों ने कई बार केंद्र की मोदी सरकार और अदानी ग्रुप के बीच संबंध का आरोप लगाया है.
बिहार में निजी कंपनियों के निवेश को बढ़ाने के लिए राजधानी पटना में दो दिनों के ‘बिहार बिज़नेस कनेक्ट 2023’ का आयोजन किया गया था. इसमें देश-विदेश की कई कंपनियां शामिल हुईं. जबकि 300 कंपनियों ने राज्य सरकार के साथ क़रीब 50 हज़ार करोड़ के निवेश का समझौता किया है.
हालाँकि अदानी ग्रुप के साथ बिहार में निवेश के मुद्दे पर समझौते के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इस मौक़े पर न तो उन्होंने मंच से कुछ कहा, जहां देश-विदेश से आए कई निवेशक मौजूद थे और न ही पत्रकारों से बात की.
‘इन्वेस्ट बिहार’ को थीम बनाकर राज्य सरकार ने कई तरह के दावे भी किए हैं. सरकार के मुताबिक़ उसका मक़सद ‘लैंड ऑफ़ हिस्ट्री’ रहे बिहार को निजी क्षेत्र की मदद से ‘लैंड ऑफ़ इंडस्ट्री’ बनाना है. यानी सरकार बिहार में औद्योगिक विकास पर जोर देने का दावा कर रही है.
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कितनी बड़ी सफलता
गुरुवार को अदानी इंटरप्राइजेज़ के निदेशक प्रणव अदानी ने बताया कि बिहार में अदानी ग्रुप पहले ही 850 करोड़ रुपये का निवेश कर चुका है, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर तीन हज़ार लोगों को रोज़गार मिला है.
प्रणव अदानी के मुताबिक़, “अदानी ग्रुप राज्य में अपने निवेश को दस गुना बढ़ा रहा है. इससे क़रीब 10 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा और इसके लिए काम भी शुरू हो चुका है. इसमें कृषि, अदानी विल्मर, सीमेंट उत्पादन और स्मार्ट मीटर लगाने की योजना शामिल है.”
अदानी ग्रुप ने राज्य में 2500 करोड़ के निवेश से अगले एक साल में दस मेट्रिक टन सीमेंट उत्पादन का लक्ष्य रखा है. अदानी का सीमेंट प्लांट वारसलीगंज और महावल में लगने जा रहा है. इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर तीन हज़ार लोगों को रोज़गार मिलने का दावा किया गया है.
अदानी ग्रुप के अलग-अलग प्रोजेक्ट से पटना, नवादा, समस्तीपुर, दरभंगा, सारण, वैशाली और सिवान समेत कई ज़िलों में लोगों को नया रोज़गार मिलने का दावा किया जा रहा है.
बिहार के उद्योग मंत्री समीर कुमार महासेठ ने बीबीसी को बताया है कि इस कार्यक्रम में अलग-अलग कंपनियों के 800 से ज़्यादा लोगों ने दिलचस्पी दिखाई है. उनका कहना है कि कोई कंपनी घाटे का कारोबार करने कहीं नहीं जाती है और लोगों को बिहार पर भरोसा है इसलिए वो आए हैं.
‘इन्वेस्ट बिहार’ के तहत जिन कंपनियों ने राज्य में निवेश के लिए समझौता किया है, उनमें भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, पटेल एग्री इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, होल्टेक इंटरनेशनल और इंडो यूरोपियन हार्ट हॉस्पिटल्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट भी शामिल हैं.
नाहर ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ के सीएमडी कमल ओसवाल के मुताबिक़ उनकी कंपनी में 25 हज़ार लोग काम करते हैं, जिनमें 40 फ़ीसदी लोग बिहार के हैं. कंपनी ने राज्य में 300 करोड़ की लागत से लॉजिस्टिक पार्क बनाने का क़रार किया है.
राज्य सरकार की तरफ से निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के दावे भी किए गए हैं. दरअसल गंगा के मैदानी इलाक़े में बसे इस राज्य में बहुत बड़ी आबादी बसती है. राज्य में ग़रीबी और बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है.
स्थानीय स्तर पर रोज़गार के कम मौक़े होने की वजह से बड़ी तादात में बिहार के कामगार और मज़दूर देश के कई राज्यों में काम की तलाश में जाते हैं. बिहार सरकार लंबे समय से राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग भी केंद्र सरकार से करती रही है.
बिहार के पास क्या है
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क़रीब 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार राज्य के पास सबसे बड़ा संसाधन उसके लोग हैं. राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ यहां की 53 फ़ीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की है.
सरकार का दावा है कि बिहार में उद्योगों के लिए कच्चा माल, बुनियादी ढांचा, कामगार और सरकारी सहायता सब कुछ मौजूद है.
पड़ोसी राज्यों नेपाल, बांग्लादेश और भूटान को मिला दें तो बिहार और इसके आसपास क़रीब 40 करोड़ की आबादी बसती है जो औद्योगिक उत्पादन के लिए एक बड़ा बाज़ार मुहैया कराती है.
उदाहरण के तौर पर राज्य सरकार का कहना है कि बिहार में 99% दवाएं दूसरे राज्यों से मंगाई जाती हैं. राज्य में सालाना क़रीब 2500 करोड़ रुपये की दवाओं की खपत है. यानी यहां दवा उद्योग की भी बड़ी संभावना है.
बिहार में भागलपुर और इसके आसपास का इलाक़ा देश में सिल्क फ़ैब्रिक के उत्पादन के लिए जाना जाता है.
जूट के उत्पादन में भी बिहार काफ़ी आगे है. जबकि दरभंगा का मखाना, मुज़फ़्फ़रपुर की शाही लीची और भागलपुर का ज़र्दालू आम भी काफ़ी मशहूर है और इन्हें जीआई टैग भी मिला हुआ है.
सरकार का कहना है कि राज्य में 3000 करोड़ का लैंड बैंक मौजूद है और यहां 75 औद्योगिक क्षेत्र हैं. यहां राज्य सरकार चमड़ा उद्योग, कपड़ा उद्योग, फूड पार्क और आईटी सेक्टर की भी अपार संभावना देखती है.
बिहार के पटना, गया और दरभंगा में एयरपोर्ट मौजूद है. राज्य सरकार के मुताबिक़ बिहार रोड डेनसिटी के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है. एक तरफ जहां देशभर के कई राज्यों में पानी की समस्या है, वहीं बिहार में इसकी कोई कमी नहीं है.
बिहार में सस्ते कामगार भी मौजूद हैं. यानी किसी भी उद्योग को जो कुछ चाहिए, वह सब बिहार में मौजूद है. फिर भी यहां उद्योगों का विकास धीमा है. इस विकास को रफ़्तार देना राज्य की बड़ी ज़रूरत है ताकि यहां से मज़दूरों के पलायन को भी कम किया जा सके.
मुश्किल
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर विद्यार्थी विकास के मुताबिक़, यह सच है कि बिहार में सबकुछ है, लेकिन ‘सब कुछ होना’ सांकेतिक नहीं हो, बल्कि यह ज़रूरत के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
विद्यार्थी विकास कहते हैं, “बिहार में सबसे ज़्यादा ज़रूरत ‘वर्क कल्चर’ बनाने की है. यहां क़ानून और व्यवस्था को दुरुस्त रखना सबसे बड़ी ज़रूरत है. यह सच है कि आज बिहार में बड़े नरसंहार नहीं होते हैं, बड़े अपराध नहीं होते हैं. लेकिन सड़क पर अपराध बंद नहीं हुए हैं.”
उनके मुताबिक़ अगर आपके इलाक़े के सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे हैं तो यह भी वर्क कल्चर को दिखाता है. उद्योग के विकास के लिए कच्चे माल के केंद्र यानी गांव के स्तर से लेकर ऊपर तक सारी व्यवस्था ठीक होनी चाहिए. इसमें सिपाही, दरोगा, ज़िला प्रशासन, अधिकारी और सचिव तक सब शामिल हैं.
दरअसल किसी भी उद्योग के लिए कच्चे माल की ढुलाई से लेकर तैयार माल को बाज़ार तक पहुँचाने में अलग-अलग स्तर पर काम होता है और इसमें स्थानीय मज़दूर, गाड़ी, ड्राइवर, फ़ैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी और कंपनी के बाक़ी लोग भी शामिल होते हैं.
निजी कंपनियों को हर स्तर पर को मिलने वाली सहूलियत उद्योगों के विकास के लिए एक बड़ी ज़रूरत मानी जाती है. जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ अपहरण और क़त्ल के मामले में बिहार देश के शीर्ष तीन राज्यों में है.
सड़क हादसों के मामलों में बिहार काफ़ी आगे है. एनसीआरबी के मुताबिक़ धार्मिक स्थलों के पास सड़क हादसे के मामलों में बिहार का स्थान सबसे ऊपर है. यानी यह आँकड़ा राज़्य में सड़कों की हालत और ट्रैफ़िक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है.
ज़रूरत
विद्यार्थी विकास दावा करते हैं, “हमारे मोहल्ले में नए बस स्टैंड के पास दो लोगों ने झगड़े में सरकारी सड़क पर गड्ढा कर दिया है. इससे वहाँ स्कूल वैन नहीं आ पाते हैं, लोगों को दूर जाकर बच्चों को छोड़ना होता है. पास में कंस्ट्रक्शन के काम रूकने से मज़दूरों का काम बंद है, लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.”
उनके मुताबिक़ बहुत बड़ा कुछ सोचने की जगह स्थानीय स्तर पर ‘वर्क कल्चर’ को सुधारने की ज़रूरत है, जब यह हाल राजधानी पटना का है तो बाक़ी इलाक़ों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. राज्य सरकार को चाहिए कि बाक़ी औद्योगिक राज्यों से पता करे कि वहां काम कैसे होता है.
दूसरी तरफ़ भले ही बिहार में कंपनियों के लिए एक बड़ा बाज़ार मौजूद है लेकिन ख़रीदारी के लिए लोगों के पास पैसे यानी क्रय शक्ति होना ज़रूरी है. भारत सरकार की तरफ से जारी साल 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक़ स्थिर मूल्य पर बिहार का प्रति व्यक्ति आय 30,779 रुपये है.
जबकि पड़ोसी राज्य झारखंड का प्रति व्यक्ति आय 55,126 रुपये, उत्तर प्रदेश का 42,525 रुपये और मध्य प्रदेश का 61,534 रुपये है. यानी प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार का औसत भारत के प्रति व्यक्ति औसत आय की तुलना में क़रीब एक तिहाई ही है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अकसर यह दावा करते हैं कि राज्य में शराबबंदी से लोगों के पैसे बचे हैं और कई परिवारों में बच्चों की पढ़ाई या दूध, खाने के सामान और ज़रूरत की चीजों पर ख़र्च करने की क्षमता बढ़ी है.
बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 से राज्य में पूर्ण शराबबंदी क़ानून लागू किया था. यहां शराब पीना, बेचना या किसी अन्य राज्य से लाकर शराब रखना भी ग़ैरक़ानूनी है. राजनीतिक तौर पर नीतीश कुमार पर यह आरोप भी लगता है कि शराबबंदी की वजह से बिहार को राजस्व का नुक़सान हुआ है.
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी आरोप लगाते हैं, “शराबबंदी से बिहार को हर साल 25 हज़ार करोड़ का नुक़सान होता है और इससे यह राज्य कंगाल हो गया है. जबकि राज्य में शराब बंद नहीं हुआ है, यह ज़्यादा दाम में मिलता है और इसकी कमाई शराब तस्करों के पास जा रही है.”
इस तरह का आरोप राष्ट्रीय जनता दल भी लगा चुकी है, जब वह राज्य में नीतीश के ख़िलाफ़ विपक्ष में बैठी थी.
यानी बिहार सरकार के पास निवेश के नाम पर फ़िलहाल निजी कंपनियों के साथ कुछ समझौते हैं, जिनका ज़मीन पर उतरना अभी बाक़ी है, लेकिन उसके सामने मुश्किलें भी कम नहीं हैं.