स्टोन क्रशरों को बंद करने पर बिफरा विपक्ष, सदन से किया वॉकआउट

 हिमाचल प्रदेश में स्टोन क्रशरों के बंद होने का मुद्दा बुधवार को प्रश्नकाल में प्रमुखता से गुंजा और इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोक-झोंक देखने को मिली। इस मुद्दे पर विपक्षी दल भाजपा ने सदन से वाकआउट भी किया। स्टोन क्रशरों को बंद करने के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के जवाब से विपक्ष ने नाखुशी जाहिर की।

विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों के बीच सदन के नेता व मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्टोन क्रशरों को बंद करने की वजह सदन को बताई। करीब 30 मिनट तक इस मामले पर सदन में सवाल-जवाब का दौर चला। इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने जैसे ही अगला सवाल पूछने की घोषणा की, तो विपक्षी सदस्य उखड़ गए और उन्होंने सरकार पर स्टोन क्रशर बंद करने की अधूरी जानकारी देने का आरोप लगाया। विपक्षी सदस्य अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे और बाद में उन्होंने सदन से वाकआउट कर दिया।

पहले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि व्यास बेसिन में बरसात के दौरान 128 क्रशर बंद करने का फ़ैसला किया गया जिससे सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि 15 सितंबर तक क्रशर बंद करना एक सामान्य प्रक्रिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जहां तक रोड़ी व रेत के दाम बढ़ने का प्रश्न है तो सरकार रोड़ी रेत के दामों को निर्माण की कीमत से जोड़ने पर भी विचार कर रही है। इससे पूर्व विपिन सिंह परमार व विक्रम ठाकुर ने सरकार द्वारा लिए गए फैसले को जनविरोधी बताया और कहा कि जहां सरकार द्वारा लिए गए निर्णय से जनता को महँगे दामों पर रोड़ी रेत खरीदने पड़े बल्कि 1600 लोगों ने रोजगार भी खोया।

उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने मूल सवाल के जवाब में कहा कि प्रदेश में भारी बारिश से हुए नुकसान को देखते हुए ब्यास बेसिन व इसकी सहायक नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में स्टोन क्रशर की जांच के लिए आठ सदस्यीय समिति गठित की गई है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष बरसात के दौरान जुलाई से 15 सितम्बर तक नदी/नालों में खनन की अनुमति नहीं होती व खनन कार्य बंद रहता है।

15 सितम्बर के बाद खनन गतिविधियों को पुनः बहाल किया गया था और मात्र स्टोन क्रशरों का संचालन ही बंद था। ऐसे में इस दौरान सरकार को किसी भी तरह के राजस्व का नुकसान नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि स्टोन क्रशरों में काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक बाहरी राज्यों से सम्बंधित होते हैं, कुछ ही हिमाचली श्रमिक होते हैं और जैसे ही स्टोन क्रशरों का संचालन शुरू होगा, तो ये श्रमिक भी पुनः कार्यरत हो जाएंगे।