“नाम बड़े और दर्शन छोटे” यह कहावत आज कल उपमंडलीय पशु चिकित्सालय कोलर पर सही चरितार्थ हो रही है। व्यवस्थागत खामियों का शिकार और स्टाफ के टोटे के चलते पशुपालकों को इसका उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। कोलर पंचायत के अलावा 3-4 अन्य पंचायतों के पशु पालकों के लिए इस हॉस्पिटल को खोला गया था।
आप जानकर हैरान होंगे कि इस सब-डिविजनल हॉस्पिटल में चीफ फार्मासिस्ट के अलावा फार्मासिस्ट का पद खाली पड़ा है। सप्ताह में 3 दिन के लिए पशु चिकित्सालय पिपलीवाला व अगले 3 दिन के लिए टोका-नगला से दोनों फार्मासिस्ट डेपुटेशन पर कोलर स्थित अस्पताल में ड्यूटी देने आते हैं। हरिपुर खोल व बाडथल-मधाना जैसे दुर्गम पंचायतों के पशुपालक आपात स्थिति में इसी चिकित्सालय की सेवाएं लेते हैं। जो फार्मासिस्ट एक बार फील्ड में किसी पशु के ट्रीटमेंट के लिए जाता है उसे आने में कई बार 1 से 2 घंटे लग जाते हैं। अन्य पशुपालकों को जो अपने पशुओं के ट्रीटमेंट के लिए आते हैं उन्हें ब्लॉक वेटनरी ऑफिसर प्रिस्क्रिप्शन लिख देते हैं। उन्हें फार्मासिस्ट के आने का इंतजार करने को कहा जाता है। खुद ब्लॉक वेटनरी ऑफिसर पशु को घर में जाकर देखने की जहमत नहीं उठाते। वह उसी स्थिति में यदाकदा जाने को तैयार होते हैं, जब पशु अंतिम सांसे गिन रहा होता है।
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बताया जाता है कि रात के समय आपातकालीन स्थिति में पशुपालकों को स्थानीय बेरोजगार डिप्लोमा होल्डर युवाओं से पशुओं को ट्रीटमेंट लेने पर मजबूर होना पड़ता है।
ब्लॉक वेटनरी ऑफिसर कर रहे हैं क्लर्क का काम
अस्पताल में तैनात एक मात्र सीनियर डॉक्टर को दिन भर प्रशासकीय कार्यों से फुरसत नहीं है। उन्हें शिमला डायरेक्टर ऑफिस व नाहन डिप्टी डायरेक्टर ऑफिस को जानकारी, मेल, सूचनाएं देने के काम के अलावा और कोई कार्य नहीं है। जो उनका वास्तविक काम है उससे वह कोसों दूर है। यदाकदा उनका मूड हो तो वह किसी पशु को देखने की जहमत उठा लेते हैं। इसे व्यवस्थागत खामी कहें या पशु पालन विभाग की लापरवाही। क्योंकि जिस समय कोलर को अपग्रेड कर ब्लॉक वेटनरी अस्पताल बनाया गया था उस वक्त यहां क्लर्क का पद सृजित नहीं किया गया।
हालांकि इससे पहले जो भी सीनियर वेटनरी डॉक्टर यहां रहे वह स्वयं फील्ड में जाकर पशुओं को भी खुद देखते थे। वहीं विभागीय व प्रशासकीय कार्य भी निपटाते थे।
ग्रामीणों का आरोप है कि पशु चिकित्सालय में सुविधाएं डिस्पेंसरी से भी बदतर है। सरकारी दवाई गरीब लोगों को नहीं मिल पाती। उन्हें बाहर से दवाई खरीद कर अपने पशुओं का इलाज करवाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। लोगों ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि ब्लॉक वेटनरी चिकित्सालय में तुरंत खाली पड़े पदों को भरकर यहां रेगुलर फार्मासिस्ट व चीफ फार्मासिस्ट की नियुक्ति तत्काल की जाये। वेटनरी डॉक्टर को निर्देश दिए जाएं कि वह अपने प्रशासकीय कार्यों के साथ-साथ फील्ड में जाकर गंभीर बीमारी से पीड़ित पशुओं का इलाज करें। इन दिनों पशुओं में कई तरह की संक्रमित बीमारियों जैसे डायरिया, टिक-फीवर व अन्य गंभीर रोगों का प्रकोप चल रहा है। ऐसे में पशु पालक जाएं तो कहां जाएं?
इसके अलावा एनएच के साथ सटे होने के कारण अस्पताल में पशुओं के ले जाना टेढ़ी खीर है। क्योंकि देहरादून-चण्डीग़ढ मार्ग के साथ होने से यहां ट्रैफिक इतना ज्यादा है कि पशु को चिकित्सालय ले जाना एक तरह से खुद को व पशु को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है।
उधर, इस मामले में सिरमौर जिला की पशु पालन विभाग की डिप्टी डायरेक्टर डॉ. नीरू शबनम ने कहा कि खाली पड़े पद को भरने के लिए सरकार को अवगत करवाया जायेगा। ब्लॉक वेटनरी ऑफिसर के फील्ड में न जाने को लेकर उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कोताही को कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। साथ ही उन्होंने व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए निर्देश देने की बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा पहला काम पशुओं का इलाज करना है। इसलिए आगे से इस प्रकार की लापरवाही नहीं होगी।