राम और अयोध्या का बिहार कनेक्शन, अनुसूचित जाति के ही कामेश्वर चौपाल ने राम मंदिर के शिलान्यास की रखी थी पहली ईंट

Ayodhya & Bihar- बिहार का अयोध्या से रिश्ता सिर्फ राम की ससुराल और सीता के मायके के कारण ही नहीं है। राम मदिर निर्माण से लेकर भाजपा के उत्थान की इबारत भी बिहार के लोगों ने ही लिखी है। सोशल मीडिया पर अयोध्या के बिहार कनेक्शन की कई तरह की जानकारियां तैर रही हैं।

पटनाः अयोध्या में राम मंदिर बन कर तैयार है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख भी 22 जनवरी निर्धारित हो चुकी है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए देश भर में निमंत्रण पत्र बांटे जा रहे हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दल इस काम को ऐतिहासिक मानते हैं, जबकि विरोधी दलों में कुछ ऐसे हैं, जो तरह-तरह के आरोप भाजपा पर मढ़ रहे हैं। इसमें सबसे कामन है कि भाजपा राम का रजीनितक इस्तेमाल कर रही है। बहरहाल, हमारा मकसद राजनीतिक छीछेलदर से इतर राम और अयोध्या का बिहार कनेक्शन खोजना है। इस क्रम में सोशल मीडिया के एक पोस्ट पर नजर पड़ी। उस पर आए वरिष्ठ पत्रकारों के कमेंट दिखे।

बिहार के अभिराम दास ने रखी थी रामलला की मूर्ति

वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि बिहार के मूल निवासी अभिराम दास ने वर्ष 1949 में बाबरी ढांचे में रामलला की मूर्ति रखी थी। उनके शिष्यों ने इस मामले में अभिराम दास की मदद की। वे बिहार के मधुबनी जिले के मूल निवासी थे। मधुबनी मिथिला में है। मिथिला श्रीराम की ससुराल है। बिहार का दूसरा अयोध्या कनेक्शन है- 1989 में बिहार के ही कामेश्वर चौपाल ने राम मंदिर के शिलान्यास की पहली ईंट रखी थी। चौपाल अयोध्या ट्रस्ट के सदस्य हैं और अनुसूचित जाति से आते हैं। सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि उनकी जाति का नाम जान-बूझ कर बता रहा हूं, ताकि लोग जानें कि यह सब ‘मनुवादी अभियान’ नहीं है। तीसरा कनेक्शन- विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष डा. आरएन सिंह 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पत्नी के साथ यजमान बनाए जाएंगे। पद्मश्री से सम्मानित डा. सिंह बिहार में हड्डी रोग के सबसे बड़े चिकित्सक हैं।

सीता के कारण बिहार का अयोध्या से अटूट रिश्ता है

महेंद्र नारायण वाजपेयी कहते हैं- बिहार और अयोध्या का संबंध तो आदि काल से है। जगत जननी मां जानकी का प्राकट्य स्थल बिहार के सीतामढ़ी में पुनौराधाम में है। जनकपुर बिहार और मिथिला का संयुक्त रूप है। दो संतों कामेश्वर चौपाल और आरएन सिंह के अलावा एक नाम छूट गया। नाम तो मुझे भी याद नहीं है, पर हाल में ही उन्होंने शरीर त्याग दिया। वे छपरा के किसी गांव के रहने वाले थे और चंद वर्ष पहले तक रामलला मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष थे। बिहार और अयोध्या (यूपी) का संबंध अकाट्य है। पटना के महावीर मंदिर के संरक्षक किशोर कुणाल की ओर से अयोध्या में नैवेद्यम के परिवर्तित नाम से प्रसाद की दुकान से लेकर मुफ्त भोजन की व्यवस्था कराया जा चुका है। अयोध्या और बिहार का संबंध तो अटूट है।

लाल नारायण सिन्हा न होते तो यह दिन नहीं आता

मिथेलश प्रसाद सिंह कहते हैं कि राम जन्म भूमि के लिए जो सूट फाइल हुआ था फैजाबाद के सिविल कोर्ट में, यदि उसी सूट को कंटीन्यू किया जाता तो हमलोग राम जन्मभूमि मुकदमा हार जाते। अरुण जेटली उस मुकदमा को जीतने के लिए, बिहार के तत्कालीन अटार्नी जनरल लाल नारायण सिन्हा से उक्त सूट पर सलाह लेने आए थे। सिन्हा साहब ने कहा- आप लोग मुकदमा हार सकते हैं, क्योंकि यह जमीन राम जन्मभूमि की नहीं है, बल्कि यह जमीन रामलला की है। आप लोग रामलला को इस सूट में वादी नहीं बनाया है। हिन्दू मेथोलॉजी के अनुसार हमारे जितने भगवान हैं, सभी जीवित हैं और उनका हिस्सा किसी भी प्रॉपर्टी में होता है। इसलिए उक्त सूट में रामलला को पार्टी बनाइए, तब आप लोगों को मुकदमा में जीत मिलेगी। सिन्हा साहब ने एक संशोधन याचिका तैयार किया और रामलला को सूट में ऐड किया गया। यह 1990 की बात है।

अयोध्या के बिहार कनेक्शन के कुछ तथ्य और भी हैं

वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र मिश्र कहते हैं- बिहार से जुड़े कुछ तथ्य और भी हैं। वीपी सिंह से लेकर चंद्रशेखर और पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में अयोध्या विवाद पर सुलह कराने के लिए पुलिस महकमे की नौकरी के दौरान पीएमओ में बतौर विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के रूप में बिहार के ही भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी किशोर कुणाल तैनात रहे। कुणाल साहब अभी पटना महावीर मंदिर न्यास के प्रधान हैं। अयोध्या मामले की वाद संख्या 5 में रामलला विराजमान को 1989 में न्यायिक व्यक्ति के रूप में वादी बनाया गया था और सुप्रीम कोर्ट में उन्हीं के नाम से जीत भी हुई है। यह भी संयोग ही है कि ‘रामलला विराजमान’ को न्यायिक व्यक्ति के रूप में स्थापित-साबित करने वाले स्व. लाल नारायण सिंह, जो भारत सरकार के अटार्नी जनरल और देश के जाने माने विधिवेत्ता थे, बिहार के ही थे।

शहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद आंदोलन के अग्रणी नेता रहे

देवेंद्र मिश्र यह भी बताते हैं- ये भी विडंबना ही है कि बिहार के चर्चित आईएएस अधिकारी अफजल अमानुल्लाह के ससुर और आईएफएस अफसर और सांसद रहे मरहूम सैयद शहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद पुनर्निर्माण आंदोलन के अग्रणी नेता रहे। शहाबुद्दीन साहब पटना विश्वविद्यालय के छात्र रहे। यह भी एक संयोग है कि पटना के रहने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ही रामलला की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में बहस की थी। रामजन्म भूमि विवाद को लेकर कुछ लोगों की व्यक्तिगत पहल को प्रभावी बनाने के लिए 1984 में पहली बार दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद की जो बैठक हुई थी, उसी में राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का ऐलान किया गया था। लेकिन कमाल की बात यह है कि इस आंदोलन को जनता के बीच ले जाने की शुरुआत हुई तो जागरण अभियान के लिए मिथिला को ही चुना गया। मिथिलांचल से शुरू हुए चार महीने के जनजागरण अभियान की कामयाबी को इस तरह समझा जा सकता है कि अयोध्या में नागा साधुओं के आंदोलन के बाद पहली बार जनकपुर में पांच लाख से ज्यादा लोग इस जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में शामिल होने पहुंच गए थे। विवादित ढ़ाचा ढ़हाने के दौरान बिहार के लखीसराय जिले के बड़हिया के दिनेश चन्द्र सिंह भी शहीद हुए, जिनका स्मारक उनके गांव में बनाया गया है। संयोग देखिए कि राम लला विराजमान के पक्ष में जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया तो अपने पाहुन के गृह जिला अयोध्या की जिम्मेदारी भी जिला अधिकारी के रूप में मिथिला के अनुज कुमार झा को ही मिली।

बीजेपी को ऊंचाई तक ले जाने की आधार भूमि भी बिहार

मिश्र जी आगे बताते हैं- जिस राम रथयात्रा के बाद अयोध्या आंदोलन ने और जोर पकड़ा और एक झटके में भाजपा को लोकसभा चुनाव में 80 के पार पहुंचा दिया, उसकी पृष्ठभूमि भी बिहार में ही तब बनी बनी, जब रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी को समस्तीपुर यानी मिथिलांचल में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार करने के लिए विशेष रूप से जिस आईएएस अधिकारी आरके सिंह को समस्तीपुर भेजा गया था, वे भी बिहार के ही हैं और अभी केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री हैं।

अयोध्या के कई और कनेक्शन जोड़े जा रहे बिहार से

दीपक मिश्रा बताते हैं- अयोध्या महाराज के वंशज बीपेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा का मूल घर दरभंगा जिले के सकरी के बेहटा गांव में है। राम मंदिर का ताला खुलवाने वाले फैजाबाद के जिला जज केएम पांडेय के बेटे की शादी भागलपुर में स्वर्गीय प्रोफेसर पंचानन मिश्र की बेटी से है। वरिष्ठ पत्रकार स्वयम प्रकाश कहते हैं- महंत परमहंस रामचंद्र दास राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख संत और श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष थे। वे सन् 1949 से राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय हुए तथा 1975 से उन्होंने दिगम्बर अखाड़े के महंत का पद संभाला। वे भी बिहार (छपरा) के ही थे। परमहंस जी महाराज का पूर्व नाम चन्द्रेश्वर तिवारी था। 17 साल की उम्र में उन्होंने साधु जीवन अंगीकार किया था। तब उनका नाम रामचन्द्र दास हो गया। बिहार के छपरा जिला के सिंहनीपुर ग्राम में 1912 में माता सोना देवी और पिता पण्डित भगेरन तिवारी (सम्भवतः भाग्यरन तिवारी) के पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ था।