साउथ अफ़्रीका से टेस्ट मैच में तीसरे दिन ही पारी से हारा भारत, कैसे बिखर गई टीम इंडिया
सेंचुरियन को साउथ अफ़्रीका का क़िला कहा जाता है. यहाँ साउथ अफ़्रीका की टीम को टेस्ट मैच में हराना बेहद मुश्किल माना जाता है.
हालांकि टीम इंडिया ने दो साल पहले बॉक्सिंग डे टेस्ट में हराकर उन्हें चौंकाया था और पहली बार इस ज़मीन पर सिरीज़ जीत की उम्मीद जगाई थी.
लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ. इस बार वर्ल्ड कप कि निराशा को भूलकर जब टीम इंडिया अफ़्रीकी ज़मीन पर टेस्ट सिरीज़ खेलने के लिए आई तो ऐसा लगा कि शायद 32 साल के सूखे को ख़त्म करने के लिए ये दौरा अभी नहीं तो कभी नहीं जैसा है.
सिर्फ़ तीसरे दिन सेंचुरियन में पारी की हार ने रोहित शर्मा, विराट कोहली और जसप्रीत बुमराह जैसे सीनियर खिलाड़ियों के टेस्ट करियर में एक बहुत बड़ी कमी छोड़ दी.
ये तिकड़ी ना तो न्यूज़ीलैंड में ना इंग्लैंड में और ना साउथ अफ़्रीका में टेस्ट सिरीज़ जीतने वाली टीम का हिस्सा बन पाई. ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ़ सिरीज़ जीतना इनके भाग्य में रहा.
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इस हार के लिए अगर किसी को ज़िम्मेदार ठहराया जाय तो आसानी से उंगलियां बल्लेबाज़ों पर उठेंगी. यशस्वी जायसवाल भले ही दूसरी टेस्ट सिरीज़ खेल रहे थे लेकिन शुभमन गिल का क्या, जिन्हें विराट कोहली के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है?
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ब्रिसबेन (गाबा) में शानदार 91 रन बनाने के बाद गिल उप-महाद्वीप के बाहर खेली गई छह टेस्ट की 11 पारियों में एक बार भी अर्धशतक का आँकड़ा पार नहीं कर पाए हैं.
इस दौरान 16.10 की मामूली औसत से 161 रन उनकी प्रतिभा के साथ बिल्कुल मेल नहीं खाते हैं.
शुभमन गिल ने किया निराश
19 टेस्ट के बाद भी गिल का औसत 32 तक नहीं पहुंचा और एशिया के बाहर तो वो 28 का औसत कर रहें हैं.
जिस बल्लेबाज़ को नई पीढ़ी का बेहतरीन बल्लेबाज़ के तौर पर देखा जा रहा है, उसे निश्चित तौर पर केपटाउन टेस्ट में असाधारण पारी खेलने की ज़रूरत है.
हार के बाद मायूस रोहित शर्मा जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आए तो मैंने उनसे यही सवाल पूछा कि ना सिर्फ़ गिल बल्कि जायसवाल और अय्यर भी पहली बार अफ़्रीकी ज़मीन पर टेस्ट खेल रहे हैं.
ऐसे में इस तरह की हार के बाद सिर्फ़ कुछ दिनों बाद दूसरा टेस्ट खेलने के लिए वो अपने खिलाड़ियों को कैसे प्रेरित कर पायेंगे?
रोहित निश्चित तौर पर इस सवाल से ख़ुश नहीं थे और उन्होंने ये याद दिलाने की कोशिश की कैसे हाल के सालों में टीम इंडिया ने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच जीते हैं.
इंग्लैंड में टीम सिरीज़ बराबर करके लौटी तो ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो बार टेस्ट सिरीज़ जीती.
बुमराह ने भले ही पारी में चार विकेट लिये लेकिन मोहम्मद शमी जैसे अनुभवी गेंदबाज़ का दूसरे छोर पर नहीं होना उन्हें कम ख़तरनाक बना रहा था.
मोहम्मद शमी की कमी
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क़रीब एक साल के बाद टेस्ट क्रिकेट में लौटे बुमराह को दूसरे छोर पर मोहम्मद सिराज से ज़्यादा उम्मीदें रहीं होंगी. यही हाल शार्दुल ठाकुर का रहा जो पिछली सिरीज़ में बेहद कामयाब रहे थे लेकिन इस मैच में बहुत महंगे साबित हुए.
अपना पहला टेस्ट खेल रहे प्रसिद्ध कृष्ण को बहुत कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उन्होंने लाल गेंद से सिर्फ़ 11 फर्स्ट क्लास क्रिकेट इस टेस्ट से पहले खेले थे.
पहली पारी में विराट कोहली और अय्यर दोनों को जीवनदान मिले थे और दूसरी पारी में भी बल्लेबाज़ी को जीवनदान मिले इसके बावजूद टीम इंडिया दोनों पारियों में मिलाकर भी 110 ओवर नहीं खेल पाई.
अगर बारिश के चलते पहले दो दिन ओवर नष्ट नहीं हुए रहते तो इस मैच का नतीजा तीसरे दिन लंच तक ही जाता यानी की सिर्फ़ सात सत्र के भीतर एक करारी हार.
इस हार ने टीम इंडिया के लिए फिर से कई सवाल खडे किए हैं. क्या बीसीसीआई को दो मैचों की बजाए चार या कम से कम तीन मैचों की टेस्ट सिरीज़ के लिए मेज़बान को नहीं मनाना चाहिए था?
क्या टीम इंडिया ऐसी बल्लेबाज़ी कंडिशन में ख़ुद को अभ्यस्त करने के लिए कम से कम दो हफ़्ते पहले यहाँ नहीं आ सकती थी?
क्या सिर्फ़ इस सिरीज़ के लिए अंजिक्या रहाणे के अनुभव पर एक बार और भरोसा नहीं जताया जा सकता था, जिन्होंने हर बार साउथ अफ्रीका में शानदार खेल दिखाया था?
ये तमाम सवाल बस यूं ही द्रविड़ और रोहित को परेशान करते रहेंगे.
लेकिन, अगर नए साल में नई ऊर्जा के साथ टीम इंडिया एक नए आत्मविश्वास के साथ केपटाउन टेस्ट खेलने के लिए मैदान में उतरे तो शायद सिरीज़ बिना हारे लौटने का ख्वाब तो पूरा कर सकती है. लेकिन, इस हार के बाद यह सोचना भी फ़िलहाल बहुत बड़ी चुनौती नज़र आती है.