रामधारी सिंह ‘दिनकर’ लिखते हैं, ‘खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़’. कुछ ऐसा कर गुज़रने की शक्ति हर इंसान में होती है, बस ज़रूरत है तो कड़ी मेहनत और उससे भी ज़्यादा धैर्य की. मेहनत, धैर्य की ही कहानी है IAS अफ़सर अरविंद कुमार मीणा की.
12 साल की उम्र में पिता को खोया
राजस्थान के ज़िला दौसा, सिकराया उपखंड क्षेत्र के नाहरखोहरा गांव में एक बेहद ग़रीब परिवार में अरविंद कुमार मीणा का जन्म हुआ. अरविंद सिर्फ़ 12 साल के थे जब उनके पिता की अचानक मौत हो गई. जनसत्ता के लेख के अनुसार, ये परिवार पहले से ही ग़रीबी की मार झेल रहा था और पिता की मौत के बाद परिवार की मुश्किलें और बढ़ गई.
मां ने मज़दूरी कर बेटों को पढ़ाया
पिता के गुज़र जाने के बाद अरविंद की मां ने बेटों की ज़िम्मेदारी संभाली. ग़रीबी की वजह से ये परिवार बीपीएल श्रेणी में आ गया.मेहनत मज़दूरी करके अरविंद की मां ने उन्हें पढ़ाया. मिट्टी के घर में रहकर अरविंद ने स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई पूरी की.
पढ़ाई छोड़ने का बना लिया था मन
मुश्किलें अक़सर इंसान को अंदर से तोड़ देती है और ऐसे में ख़ुद को समेट-सहेज कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल होता है. कुछ ऐसा ही अरविंद के साथ हुआ. घर की माली हालात ने अरविंद को तोड़ दिया और उन्होंने पढ़ाई-लिखाई छोड़ देने का मन बना लिया. मां ने बेटे का हौंसला बढ़ाया और हिम्मत दी. मां के साथ ने अरविंद को ताकत दी और वो दोबारा मेहनत करने में जुट गए.
सशस्त्र सीमा बल में चयन
अरविंद की मेहनत रंग लाई और उनका चयन सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में सहायक कमांडेंट पोस्ट पर हो गया. सेना में नौकरी करने के साथ ही अरविंद ने UPSC की तैयारी भी जारी रखी.
आख़िरकार IAS बन गए
अरविंद ने UPSC की परीक्षा दी. अरविंद ने देशभर में 676वां रैंक और SC वर्ग में 12वां स्थान प्राप्त किया. मिट्टी के घर से लेकर IAS की कुर्सी तक का अरविंद मीणा का सफ़र हर किसी के लिए प्रेरणादायक है.