6 जुलाई भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज एक अहम तारीख है. आज ही के दिन 1892 में दादाभाई नौरोजी को यूनाइटेड किंगडम (यूके) की संसद के लिए चुना गया था. दादाभाई न सिर्फ पहले भारतीय थे, बल्कि पहले एशियाई भी थे, जो ब्रिटेन की संसद में पहुंचे थे. सिर्फ 5 वोटों से दादाभाई नौरोजी ने यह चुनाव जीता था.
4 सितंबर 1825 को बॉम्बे के एक गरीब परिवार में पैदा होने के बावजूद जिस तरह से दादाभाई ने विश्व स्तर पर भारता का नाम रौशन किया वो बड़ी बात है. उन्हें भारत के ‘सबसे वृद्ध शख्स’ के तौर पर भी जाना जाता है. दादाभाई लिबरल पार्टी के सदस्य बनकर यूके की संसद में पहुंचे थे.
वो साल 1892 से 1895 तक हाउस ऑफ कॉमन्स में रहे. दादाभाई ने लड़कियों के लिए खूब काम किया, जिस दौर में लोग लड़का-लड़की में अंतर करते थे. उस दौर में उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोलकर मिसाल कायम की थी. इस काम के लिए उन्हें समाज का खूब विरोध झेलना पड़ा, मगर वो अपने रास्ते से पीछे नहीं हटे. उनकी मेहनत का ही परिणाम था कि पांच साल के भीतर उनका स्कूल छात्राओं से भर गया था.
दादाभाई नौरोजी अब हमारे बीच में नहीं हैं. 30 जून 1917 को उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी, मगर उनका काम हमेशा लोगों के बीच में रहेगा. जब-जब ब्रिटेन की संसद की चर्चा होगी, तब-तब लोगों की जुबान पर उनका नाम होगा. ब्रिटेन की संसद में चुनकर पहुंचने वाले पहले एशियाई के रूप में वो हमेशा याद किए जाते रहेंगे.