चुनौतियों से जूझना पड़ा, लेकिन खुद पर भरोसा कायम रखा: अमेरिका पहुंचकर बिजनेसवुमन के तौर पर अपनी पहचान बनाईं, आज 35 से ज्यादा देशों में फैला कारोबार, दुनिया की कई बड़ी कंपनियां क्लाइंट

वह पंजाब में जन्मीं, हरियाणा में पली-बढ़ीं और अमेरिका पहुंचकर बिजनेसवुमन के तौर पर अपनी पहचान बनाईं। लेकिन, उनकी यह राह आसान नहीं थी। जिस समाज में बेटियों को बोझ समझकर मार दिया जाता, उनका नौकरी करना गुनाह समझा जाता, ऐसे समाज में लड़कियों ने अपने बूते पर आगे बढ़ने के सपने देखे। उन्हें तमाम चुनौतियों से जूझना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुद पर भरोसा कायम रखा। आज 35 से ज्यादा देशों में उनका कारोबार फैला है। दुनिया की कई बड़ी कंपनियां उनकी क्लाइंट हैं।

‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए गीतांजलि धंजल से और जानिए उनकी कहानी, खुद उनकी जुबानी…

अमृतसर की एक मिडिल क्लास फैमिली में मेरा जन्म हुआ। तीन बहनों में मैं दूसरे नंबर पर हूं, मेरा कोई भाई नहीं है। छोटी थी, तभी पापा अमृतसर से फरीदाबाद शिफ्ट हो गए। उन दिनों हरियाणा बेटियों से भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या के लिए पूरे देश में बदनाम था। बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता या फिर बेटी जन्म ले भी ले, तो उसके अपने ही उसका दम घोंटकर मार देते।

लेकिन, मम्मी-पापा ने सोसाइटी की इस सोच से हम बहनों को बचाकर रखा। कभी हमें एहसास नहीं हुआ कि लड़के-लड़की में कोई अंतर होता है। मुझपर कभी कोई रोक-टोक, पाबंदी नहीं लगी। हमेशा प्रोत्साहित गया किया कि खूब पढ़ो और आत्मनिर्भर बनो।

अपनी बहनों के साथ गीतांजलि (सबसे दाएं)।

समाज को दरकिनार कर शुरू की नौकरी, मर्दों के बीच बनाई अपनी जगह
मेरी पूरी पढ़ाई भी फरीदाबाद में ही हुई। मैंने इंजीनियर बनने का सपना देखा, फैमिली ने सपोर्ट किया तो वाईएमसीए यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उस समय इंडिया में इंटरनेट की शुरुआत हो रही थी। मेरी बड़ी बहन कॉलेज की पढ़ाई पूरी करते ही जॉब करने लगीं। उन्हें देखकर मैंने भी नौकरी करने का मन बना लिया। उस दौर में मेरे रिश्तेदार नहीं चाहते थे कि उनकी बेटियां घर की चारदीवारी से बाहर निकलें और नौकरी करें।

नौकरी करने वाली लड़कियों के लिए समाज की सोच भी अच्छी नहीं थी। लेकिन, मेरे मम्मी-पापा ने हम बहनों को कभी नहीं रोका। 1998 में फरीदाबाद में व्हर्लपूल कंपनी में मुझे पहली जॉब मिली। दफ्तर में इक्का-दुक्का लड़कियां ही दिखतीं। रिश्तेदारों के घर जाती तो उनकी बेटियां कहतीं- ‘तुम कितनी लकी हो, नौकरी कर पा रही हो। हम तो चाहकर भी अपने सपने पूरे नहीं कर सकते।’

घर से निकलकर बाहर की दुनिया में अपनी जगह बनाना, अनजान लोगों के बीच काम करना मेरी जिंदगी में बड़ा बदलाव लेकर आया। अलग-अलग बैकग्राउंड से आने वाले लोगों से मिली। सीनियर्स से नई-नई चीजें सीखने और अपने जूनियर्स को सिखाने, उनके साथ आगे बढ़ने का मौका मिला।

शादी के बाद भी नहीं छोड़ा करियर, अमेरिका में बनी वर्किंग मॉम
साल 1999 के आखिर में मेरी शादी हो गई। पति पहले से यूके में काम कर रहे थे। शादी के बाद हम दोनों अमेरिका चले गए और नए सिरे से जिंदगी शुरू की। तब हम दोनों के पास सिर्फ एक-एक सूटकेस था, लेकिन एक-दूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते गए।

इसी दौरान दो बेटियों की मां भी बनी। तब मैंने जाना इंडिया हो या अमेरिका, वर्किंग मॉम्स की लाइफ सब जगह एक जैसी है। बच्चों को पालना, पति का ख्याल रखना, घर संभालना और इसके साथ ही दफ्तर की जिम्मेदारियां उठाना। सबकुछ एकसाथ करना पड़ता है। पहली बेटी हुई तो एक-डेढ़ साल के लिए छोटा ब्रेक भी लिया। वह थोड़ी बड़ी हुई तो दोबारा काम करना शुरू कर दिया।

मैं सुबह नौकरी पर जाती तो पति बेटी को डे-केयर सेंटर पर छोड़कर आते। फिर ऑफिस का काम खत्म कर मैं उसे लेने जाती। फिर दूसरी बेटी भी हुई। छोटे बच्चों के साथ नौकरी करना आसान नहीं था। पति बहुत सपोर्ट करते, लेकिन काम के सिलसिले में उन्हें भी कई बार बाहर जाना पड़ता। तब मैं और अकेली पड़ जाती। ऐसे में फैमिली के सपोर्ट की बहुत जरूरत महसूस होती, लेकिन वहां ऐसा कोई नहीं था। भारत में तो बच्चों को संभालने के लिए भरा-पूरा परिवार मिल जाता है।

‘यंत्रा’ ने बनाया बिजनेसवुमन, 35 देशों में फैली मेरी कंपनी
साल 2009 में मेरे एक पुराने कलीग ने ‘यंत्रा’ की शुरुआत की तो मैंने भी नौकरी छोड़कर उनके साथ आ गई। मैंने महज 3-4 लोगों के साथ मिलकर एक छोटे से प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया, फिर एक के बाद एक प्रोजेक्ट मिलते गए। आज मेरी कंपनी अमेरिका, इंडिया के साथ ही ब्राजील, अर्जेंटीना, यूके और जापान जैसे 35 से ज्यादा देशों में सर्विस मुहैया करा रही है। अमेरिका, कनाडा और इंडिया में मेरी कंपनी के ऑफिस हैं।

अब फिलिपींस में भी दफ्तर खोलने की तैयारी कर रहे हैं। दुनियाभर में 300 से ज्यादा प्रोफेशनल्स हमारी टीम का हिस्सा हैं। मेरी कंपनी की एक खास बात और है कि इसमें 45 फीसदी कर्मचारी महिला हैं। जब अलग-अलग देशों और संस्कृतियों के लोग एकसाथ मिलते हैं तो इनोवेशन को बढ़ावा मिलता है। यही वजह है कि कंपनी का बिजनेस बहुत तेजी से बढ़ रहा है और रेवेन्यू 166 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है।

दुनिया की दिग्गज कंपनियां ‘यंत्रा’ की क्लाइंट, भारत में AI पर 100 करोड़ का निवेश
सॉफ्टवेयर, रिटेल, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से लेकर नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशंस तक अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों को यंत्रा मैनेजमेंट और टेक्निकल सपोर्ट मुहैया कराती है। कंपनियों के कामकाज करने के तरीके को आसान बनाती है, ताकि कस्टमर को बेहतर सर्विस मिल सके। यंत्रा के सपोर्ट से कंपनियों का बिजनेस कई गुना बढ़ जाता है। यंत्रा के क्लाइंट्स में मेटा (फेसबुक), क्रेडिट कर्मा और सोलर एनर्जी पर काम करने वाली नेक्सट ट्रैकर जैसी दुनिया की कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं।

इसके साथ ही यंत्रा अब इंडिया के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मार्केट पर भी 100 करोड़ रुपए इन्वेस्ट करने की तैयारी कर रही है, ताकि एआई को बढ़ावा देने के साथ ही लोगों की जिंदगी भी बेहतर बना सकें और नई पीढ़ी को भी सिखा सकें। आने वाले टाइम में एआई दुनिया को बदल देगा। इससे नौकरियां कम नहीं होंगी, बल्कि लोग और बेहतर तरीके से काम कर सकेंगे। अगले 2 साल में मेरी ही कंपनी भारत में 500 लोगों को नौकरी देगी।

बिना छुटि्टयों के रात-रातभर जागकर किया काम, खुद बनाई अपनी राह
यहां तक पहुंचना मेरे लिए आसान नहीं था। भले ही मैं बिजनेसवुमन बन गई हूं, लेकिन आज भी रात-रात भर जागकर काम करती हूं। काम इतना ज्यादा होता है कि छुट्टियां नहीं ले पाती। एकसाथ कई मोर्चों पर काम करना पड़ता है। मुश्किलें आती हैं, लेकिन उनसे पार पाने का रास्ता भी खुद ही खोजना पड़ता है। सफलता तभी मिलती है।

यह बात सही है कि आज भी दुनिया में महिलाओं को हर कदम पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन, इससे निपटने के लिए जरूरी है कि आप बोलें, मजबूती के साथ अपनी बात रखें। शुरुआती दिनों में ऑफिस की मीटिंग्स के दौरान पुरुषों के बीच मैं अकेली महिला हुआ करती थी। लेकिन, खुलकर अपनी राय जाहिर करती थी।

मेरे कलीग्स और सीनियर्स ने भी मुझे सपोर्ट किया, मेरी हर बात गंभीरता से सुनी, जिससे मेरा खुद पर भरोसा बना रहा। मैंने मन की वे दीवारें ढहा दीं, जो मुझे आगे बढ़ने, बोलने से रोकती थीं। कभी इस सोच को खुद पर हावी नहीं होने दिया कि मैं लड़का नहीं हूं, इसलिए मुझे मौके नहीं मिलेंगे।

लड़कियों के आगे बढ़ने में सबसे बड़ी चुनौती उनका खुद का मेंटल ब्लॉक होता है। उन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता कि वह कोई काम सफलतापूर्वक कर सकती हैं या नहीं। दूसरे लोग भी उनकी काबिलियत पर भरोसा नहीं करते। इसलिए, खुद पर भरोसा करें। अगर आपने खुद को बता दिया कि जो टारगेट आपने तय किया है, उसे पाने की काबिलियत भी रखती हैं, तो फिर कोई भी मुश्किल आपके आड़े नहीं आ सकती।