इंसान की लगन अगर सच्ची हो तो वो बुरी से बुरी परिस्थिति को पार कर सफलता हासिल कर सकता है. नक्सली व आतंकवादी क्षेत्रों के बच्चों के लिए उनकी पढ़ाई सबसे बड़ी चुनौती होती है. ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा समय स्कूल बंद ही रहते हैं. लेकिन अगर पढ़ने की लगन और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो ऐसे क्षेत्रों के बच्चे भी सफलता हासिल कर सकते हैं. इस बात का प्रबल प्रमाण हैं दंतेवाड़ा जैसे नक्सल क्षेत्र की रहने वाली नम्रता जैन. नम्रता के जीवन में एक के बाद एक चुनौतियां आती रहीं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनकी इसी सच्ची लगन और जी तोड़ मेहनत ने उन्हें आईएएस अधिकारी बना दिया. तो चलिए जानते हैं नम्रता जैन के आईएएस बनने के सफर के बारे में
शुरुआती शिक्षा में आई दिक्कतें
2019 बैच की नम्रता जैन की दूसरे फेज की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अब उन्हें छत्तीसगढ़ के महासमुंद की SDM बनाया गया है. आज भले ही वह आईएएस अधिकारी हैं लेकिन उनके लिए यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. उन्हें बचपन से ही अपने इस सपने को पूरा करने के लिए एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. लेकिन उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया और डट कर इन चुनौतियों का सामना करती रहीं. जिसका नतीजा आज सबके सामने है.
नम्रता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दंतेवाड़ा जैसे नक्सल क्षेत्र से पूरी की. वह यहां के कारली के निर्मल निकेतन स्कूल में पढ़ती थीं. नम्रता बताती हैं कि यहां आए दिन कोई ना कोई घटना होती रहती थी जिसके कारण ज़्यादातर समय स्कूल बंद ही रहते थे. इस वजह से नम्रता की पढ़ाई हमेशा बाधित होती रही लेकिन उनके अंदर हमेशा से कुछ कर गुजरने का जुनून था. यही वजह रही कि उन्होंने अपनी सफलता के रास्ते में आने वाली किसी भी कठिनाई को कभी बड़ा नहीं बनने दिया. उन्होंने यहां से अपनी 10वीं की पढ़ाई पूरी कर ली.
आगे की पढ़ाई के लिए मां ने की मदद
10वीं करने के बाद नम्रता के लिए एक नई समस्या खड़ी हो गई. आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दंतेवाड़ा से बाहर जाना था लेकिन परिवारवालों ने इसके लिए साफ मना कर दिया. वे इस तरह अपनी बेटी को अकेली बाहर नहीं भेजना चाहते थे लेकिन इस मुश्किल घड़ी में नम्रता को उनकी मां किरण का साथ मिला. मां ने नम्रता का समर्थन करते हुए परिवार के अन्य सदस्यों को समझाया. इसका नतीजा ये निकलाकि परिवार के लोग मान गए. इसके बाद आईएएस बनने तक नम्रता का अधिकतर समय घर से दूर ही बीता. वह भिलाई में 5 साल और दिल्ली में 3 साल तक रहीं. नम्रता ने भिलाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकॉम इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्हें एक पब्लिक सेक्टर कंपनी में जॉब मिल गई. हालांकि जॉब करने से पहले ही नम्रता अपने चाचा और मामा के प्रोत्साहन पर दिल्ली जा कर यूपीएससी की पढ़ाई करने और IAS बनने का मन बना चुकी थीं. यही वजह रही कि उन्होंने जॉब के लिए मना कर दिया और दिल्ली आ कर तैयारी में जुट गईं.
पहले आईपीएस बनीं और फिर आईएएस
दिल्ली आने के बाद नम्रता ने 2015 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी. पहली दफा उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वह प्रिलिम्स भी पास ना कर पायीं. नम्रता को इस बात का पहले से अंदाज था कि आईएएस बनने की राह आसान नहीं है. उन्होंने अपनी मेहनत पहले से कई गुना बढ़ा दी. इसके लिए अब उन्होंने दिन रात एक कर दिए. इनकी इस मेहनत का नतीजा ये निकला कि 2016 में इन्हें यूपीएससी परीक्षा में 99वां रैंक प्राप्त हुआ. हालांकि इतने शानदार रैंक के बावजूद वह आईएएस नहीं पाईं.
इस रैंक के साथ वह आईपीएस के लिए दंतेवाड़ा से चयनित होने वाली पहली कैंडिडेट बन गई थीं. उन्हें मध्यप्रदेश कैडर की IPS अफसर नियुक्त किया गया. नम्रता का सपना आईएएस बनने का था और आईपीएस बनने के बाद भी वह अपने इस सपने को भूली नहीं थी. यही वजह थी कि सरदार वल्लभ भाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी, हैराबाद में ट्रेनिंग करने के दौरान भी उन्होंने यूपीएससी की तैयारी नहीं छोड़ी. इसके बाद नम्रता ने तैयारी के लिए एक साल का अवकाश भी लिया.
दो चाचाओं की मौत ने गहरा सदमा पहुंचाया
नम्रता ने अपने सपने को साकार करने के लिए एक बार फिर से यूपीएसी परीक्षा देने की सोची लेकिन इस दौरान भी उन्हें मानसिक परेशानियों से जूझना पड़ा. दरअसल यूपीएससी की तैयारी कर रही नम्रता को पहले ये खबर मिली की उनके बड़े चाचा अमृत जैन की हार्टअटैक से मौत हो गई. नम्रता इस सदमे से उबरी ही थीं कि 6 महीने बाद उन्हें अपने छोटे चाचा संतोष जैन की हार्टअटैक से मौत की खबर मिली. इन दोनों घटनाओं ने उनकी तैयारी पर गहरा असर डाला. इसके बाद वह खुद परीक्षा से कुछ दिन पहले तक महीना भर बीमार रहीं.
नहीं हारी हिम्मत और पूरा किया सपना
इतना सब होने के बावजूद नम्रता ने हार नहीं मानी और यूपीएससी परीक्षा की तैयारियों में जुटी रहीं. 2018 में उन्होंने फिर से अपना भाग्य आजमाया और परीक्षा दी. इस बार भाग्य से ज्यादा उनकी मेहनत का रंग गहरा था. उन्होंने ऑल इंडिया 12वां रैंक प्राप्त कर अपने सपने को साकार कर लिए लिया. इस शानदार रैंक के बाद वह आईएएस अधिकारी बन गईं.